संयुक्त राष्ट्र संघ की जनरल असेंबली में शनिवार को इस्लामोफोबिया (इस्लाम से नफरत) के खिलाफ प्रस्ताव पास करने पर वोटिंग हुई। ये प्रस्ताव चीन के सहयोग से पाकिस्तान लाया था। भारत और कुछ अन्य देश इस वोटिंग में शामिल नहीं हुए।
इस डेलीगेशन ने इस्लामोफोबिया के जिक्र में CAA और राम मंदिर का भी जिक्र किया। UN में भारत की राजदूत रुचिरा कंबोज ने इसकी कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा- “मेरे देश के मुद्दों पर इस डेलीगेशन के गलत विचार हैं।” जब असेंबली उस मुद्दे पर चर्चा कर रही है जिस पर गहराई से सोचने, समझदारी और बुद्धिमानी की जरूरत है, तो डेलिगेशन को उसी पर फोकस रहना चाहिए था , इस से डेलिगेशन की मानसिकता का पता चलता है , इस वक्त डेलीगेशन की ऐसी सोच ठीक नहीं है।
‘सिर्फ एक नहीं सभी धर्मों के खिलाफ नफरत की आलोचना हो’
UN में भारत ने ज़ोर दे कर कहा कि सिर्फ एक धर्म नहीं बल्कि सभी धर्मों के नाम पर होने वाले दुनिया के किसी भी कोने में हर भेदभाव की आलोचना की जानी चाहिए। चाहे वो यहूदी हों, मुस्लिम हों या ईसाई। रुचिरा ने ये भी कहा कि भेदभाव सिर्फ अब्रहाम से जुड़े धर्मों तक सीमित नहीं है।
रुचिरा ने कहा- दशकों से पुरे विश्व में एकत्रित सबूत भी इस बात की ओर इशारा करते हैं कि सिर्फ इस्लाम ही नहीं बल्कि दूसरे धर्म भी भेदभाव और नफरत का शिकार हुए हैं। यही भेदभाव हिंदुओं, बौद्ध और सिखों से भी होता रहा है।
भारत ने कहा कि इस प्रस्ताव से ऐसा असर न हो जाये कि भविष्य में अलग-अलग धर्मों से इसी तरह नफरत के खिलाफ प्रस्ताव पास किए जाने लगें। इससे हो सकता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ धर्म के नाम पर अलग-अलग गुटों में बंट जाए । इसलिए स्वाभविक है कि UN को धर्म से ऊपर उठकर सोचना चाहिए।
कहीं ऐसा ना हो कि इस तरह के प्रस्ताव हमें एकजुट करने की बजाय तोड़ ही दें। बल्कि किसी एक धर्म के बजाय विश्व के सभी धर्मों के खिलाफ नफरत और भेदभाव को रोकने के लिए प्रस्ताव पास होना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र संघ में इस्लाम से नफरत के खिलाफ लाए गए इस प्रस्ताव का 115 देशों ने समर्थन किया। हालांकि भारत, ब्राजील, फ्रांस , जर्मनी, इटली, यूक्रेन और ब्रिटेन समेत 44 देश वोटिंग से अनुपस्थित रहे।
पाकिस्तान और चीन के इस प्रस्ताव में ये भी मांग की गई थी कि इस्लामोफोबिया को काउंटर करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ में एक स्पेशल एनवोय को नियुक्त किया जाए। भारत ने इसका विरोध किया है और कहा कि नियुक्ति से पहले ये ज़रूर सोचना चाहिए कि क्या ये UN के बजट और रिसोर्स का सही इस्तेमाल है ?
UN में भारत की राजदूत रुचिरा कंबोज ने शरणार्थियों को पनाह देने के भारत के इतिहास का जिक्र करते हुए कहा कि हमने विश्व के उन सभी पारसियों, बौद्ध और यहूदियों को शरण तब दी थी जब उन्हें धार्मिक नफरत के चलते मारा जा रहा था।
दरअसल, 2019 में 15 मार्च को न्यूजीलैंड में दो मस्जिदों में गोलीबारी हुई थी, इसमें 50 लोग मारे गए थे ,इस घटना की दुनिया भर में निंदा की गई थी। 2022 में UN में एक प्रस्ताव पास कराया गया था इसके तहत 15 मार्च को इस्लामोफोबिया रोकने का दिन घोषित किया गया था।